CONSIDERATIONS TO KNOW ABOUT राजनीति विज्ञान

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काकतीय वंश – ११९० ई. के बाद जब कल्याण के चालुक्यों का साम्राज्य टूटकर बिखर गया तब उसके एक भाग के स्वामी वारंगल के काकतीय हुए; दूसरे के द्वारसमुद्र के होएसल और तीसरे के देवगिरि के यादव। स्वाभाविक ही यह भूमि काकतीयों के अन्य शक्तियों से संघर्ष का कारण बन गई। काकतीयों की शक्ति प्रोलराज द्वितीय के समय विशेष बढ़ी। उसके पौत्र गणपति ने दक्षिण में कांची तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गणपति की कन्या रुद्रंमा इतिहास में प्रसिद्ध हो गई है। उसकी शासननीति के प्रभाव से काकतीय साम्राज्य की समुन्नति हुई। वेनिस के यात्री मार्को पोलो ने रुद्रंमा की बड़ी सराहना की है।

प्राचीन काल में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से आरंभ होता है। कुषाणों, गुप्त शासकों एवं उत्तर गुप्तकाल में निर्मित मूर्तियों के विकास में जन-सामान्य की धार्मिक भावनाओं का विशेष योगदान रहा है। कुषाणकालीन मूर्तियों एवं गुप्तकालीन मूर्तियों में मूलभूत अंतर यह है कि जहाँ कुषाणकालीन मूर्तियों पर विदेशी प्रभाव स्पष्ट है, वहीं गुप्तकालीन मूर्तियाँ स्वाभाविकता से ओत-प्रोत हैं। भरहुत, बोधगया, साँची और अमरावती में मिली मूर्तियाँ जनसामान्य के जीवन की सजीव झाँकी प्रस्तुत करती हैं।

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आरण्यक : अरण्यों (जंगलों) में निवास करनेवाले संन्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गये आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा- आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन है। अथर्ववेद को छोड़कर अन्य तीनों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद और समावेद) के आरण्यक हैं। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखयन आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद् आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मण) प्रमुख हैं। ऐतरेय तथा शांखयन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद् आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से संबद्ध हैं। तैत्तिरीय आरण्यक में कुरु, पंचाल, काशी, विदेह आदि महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।

यूपीएससी सिविल सर्विसेज (प्रारंभिक परीक्षा) में पूछे गए प्रश्न

क्या आप जानते हैं भारतीय इतिहास की इन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में?

एन. डे के अनुसार, ‘‘सल्तनतकालीन लेखकों के वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अपने स्वामी का यशगान करने और इस्लाम की विजयों के प्रति धार्मिक उत्साह के कारण सामाजिक व राजनीतिक संस्थाओं की ओर ध्यान नहीं देते थे।’’

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विजय अभियान

पश्चिमी चालुक्य – प्रतीच्य चालुक्य पश्चिमी भारत का राजवंश more info था जिसने २१६ वर्ष राज किया।

खोंदमीर रचित कानून-ए-हुमायुनी हुमायूँ के शासनकाल का समसामयिक विवरण प्रस्तुत करती है।

पतंजलि द्वारा रचित “महाभाष्य” तथा कालिदास द्वारा रचित “मालविकाग्निमित्र” से शुंग वंश के इतिहास के बारे में ज्ञात होता है। शूद्रक द्वारा रचित “मृच्छकटीकम” तथा दंडी द्वारा रचित “दशकुमारचरित” से गुप्तकाल की सामजिक व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है। बाणभट्ट द्वारा लिखी गयी हर्षवर्धन की जीवनी “हर्श्चारिता” में सम्राट हर्षवर्धन का गुणगान किया गया है। जबकि वाकपति द्वारा रचित “गौडवाहो” में कन्नौज के शासक यशोवर्मन और विल्हण के “विक्रमांकदेवचरित” में कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ठ की उपलब्धियों का गुणगान किया गया है।

इतिहासकार स्मिथ, वी.एस ने इतिहास को परिभाषित करते हुए कहा : “वह इतिहास का मूल्य और रुचि काफी हद तक उस डिग्री पर निर्भर करता है जिसमें वर्तमान अतीत से प्रकाशित होता है।”

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